श्रीगुरुदेव के प्रति आचरण
श्रीगुरुदेव के निमित्त, सर्वदा उनके आवश्यक एवं प्रिय वस्तुओं का प्रबंध करे। नित्य श्रीगुरुगृह का मार्जन श्रीगुरुदेव के श्रीअंग का मार्जन, चन्दन लेपन, वसन प्रक्षालनादि कार्य करे। श्रीगुरुदेव के निर्माल्य (वस्त्र व माला आदि), पादुका, आसन, छाया एवं आसन्दी, भोजन पात्र का लंघन कदापि न करे। अपने कर्तव्य के विषयों का निवेदन भी श्रीगुरुदेव से करे।
बिना अनुमति के अन्यत्र गमन न करे। श्रीगुरुदेव के प्रियता हेतु निरन्तर रत रहें। श्रीगुरुदेव के समीप में पैर फैलाकर कदापि न बैठे। जम्हाई, हास्य, उच्च भाषा, अंगुली को चटकाना एवं कपड़े या रुमाल द्वारा कण्ठ को न पौछें।श्रीगुरुदेव के समान ही गुरुपुत्र, गुरुपत्नी एवं बंधु-बन्धवों के प्रति आदर व्यवहार करे।
श्रीगुरुदेव के सम्मुख में पूजा ग्रहण करना, दीक्षा प्रदान करना, व्याख्या कार्य (बिना आज्ञा के) कभी भी न करे।श्रीगुरुदेव का दर्शन जहाँ जहाँ हो, वहाँ वहाँ अपने के धन्य मानकर भूमि पर दण्डवत् होकर प्रणाम करे। श्रीगुरु के वाक्य, आसन, यान, पादुका, वस्त्र, छाया का लंघन शिष्य कभी भी न करे।
श्रीगुरुदेव के गुरु के प्रति भी गुरुवत् आचरण करे, गुरु से आदेश प्राप्त कर ही आत्मीय गुरु वर्ग को प्रणाम करे।मोह वश कभी भी गुरु को आदेश न करे, एवं श्रीगुरुदेव का आदेश लंघन कभी न करे। श्रीगुरु को बिना निवेदन किए कभी भी कुछ भी भोजन न करे। अन्यथा आज्ञा लंघन दोष होगा। श्रीगुरु को आते देखकर उनके सन्नमुख उपस्थित होना कर्तव्य है। श्रीगुरु के जाने के पश्चात ही जाना चाहिए। श्रीगुरु के सम्मुख में आसन एवं बिस्तर पर न बैठे। श्रीगुरुदेव को अर्पण करने के पश्चात् ही ग्रहण करे। श्रीगुरुदेव के द्वारा ताडित, पीड़ित होने पर भी अनादर-अप्रिय आचरण श्रीगुरुदेव के प्रति ना करें। जो श्रीगुरुदेव का प्रीतिपूर्वक धन, प्राण, कर्म, मन, वाणी से सेवा करता है वह व्यक्ति परम पद को प्राप्त करता है। तथाहि : ह भ वि
🙏 जय गुरुदेव🌹
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