जीव भगवान् का अंश है।
जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है। जब तक वह श्रीकृष्ण से सेवा एवं भक्ति के माध्यम से नहीं जुड़ता, तब तक वह सुख-शान्ति और आनन्द को प्राप्त नहीं कर सकता। कृष्णनित्यदास जीव ताहा भुलि गेल जीव नित्य कृष्णदास है- अपने इस स्वरूप को जीव भूल जाता है और इसी कारण माया उसको बाँध लेती है।
ताते कृष्ण भजे, करे गुरुर सेवन। माया जाल छूटे, पाय कृष्णेर चरण॥
अत: श्रीगुरुदेव की सेवा करते हुए श्रीकृष्ण का भजन करे, तभी यह जीव माया जाल से छूटकर श्रीकृष्ण चरण सेवा को प्राप्त कर सकता है। (चैतन्य महाप्रभु - श्रीसनातन शिक्षा)
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