श्रीराधारमणाष्टकम्

राधारमण
श्रीराधारमणाष्टकम्

भक्त्या गोपालभट्टस्या जनिदामोदराश्मन:।

तं राधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। १।

गोस्वामिपाद श्रीगोपालभट्टजी की प्रेम-भक्ति से जो दामोदर-शालिग्राम शिला से प्रकटित हुए हैं, उन अविनव जलयुक्त श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण-कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। १।

विभ्राणं वदनाम्भोजे गोविन्द लपनद्युतिं।

श्रीराधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। २।

जिनके श्रीमुखारविन्द पर व्रजेन्द्रनन्दन श्रीगोविन्द के वदनारविन्द की छटा सुशोभित हो रही है, उन अविनव जलयुक्त श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण-कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। २।

गोपीनाथोरस: शोभां स्वोरसा दधतं प्रभुं। 

श्रीराधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। ३।

रासरसारम्भी श्रीगोपीनाथदेव के वक्षस्थल की सौन्दर्य-माधुर्य शोभा को अपने वक्षस्थल पर जो धारण करते हैं, उन अविनव जलयुक्त श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण-कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। ३।

त्रिभङ्गललितां चारुं सन्नीवीं दधतं कटौ।

श्रीराधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। ४।

जो अपने कटिदेश में ललित त्रिभङ्ग-भङ्गी को नीवी के रूप में धारण कर रहे हैं, उन अविनव जलयुक्त श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण-कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। ४।

पदोर्मदनगोपालस्येवाभां दधतं पदो:।

श्रीराधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। ५।

जिनके चरणकमलों में श्रीमदनगोपालदेव के चरणों की छटा प्रकाशित हो रही है, उन अविनव जलयुक्त श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण-कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। ६।

यो भुवि प्रादुरभवद् दृष्टानन्दर्शनोत्सुकान्।

श्रीराधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। ६।

जो अपने प्रियभक्तजनों की दर्शन-उत्सुकता को देखकर इस पृथ्वीतल पर आविर्भूत हुए हैं, उन अविनव जलयुक्त श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण-कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। ६।

श्रीमद्गोपालभट्टस्य प्राणाधार स्वरूपकं।

श्रीराधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। ७।

श्रीमद्गोपालभट्ट गोस्वामी जी के जो प्राणाधार स्परूप हैं, उन जलयुक्त अभिनव श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण-कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। ७।

तदीय करुणा प्रार्थी गोपीनाथैक जीवनं।

श्रीराधारमणं वन्दे सार्णस्क घनमेचकम्। ८।

उनका करुणा-कटाक्ष प्रार्थी, उन जलयुक्त अभिनव श्यामघन स्वरूप श्रीराधारमणदेव जी के चरण कमलों में मैं नमस्कार करता हूँ। ८।

राधारमणदेवस्य योऽष्टकं सततं पठेत्।

सद्यो श्रीगोपाल भट्टस्यानुकम्पा-पात्रतां व्रजेत्। ९।

श्रीराधारमणदेव जी के इस अष्टक का जो व्यक्ति नित्य पाठ करेगा, वह शीघ्र ही श्रीगोपाल भट्ट गोस्वामी की करुणा का पात्र बन जाएगा। ९।


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